स्वामी विवेकानंद-किसी विशाल वटवृक्ष के नीचे खड़े होकर जब हम इसमें से विमुक्त हो तो उसके विस्तृत आयतन की ओर देखते हैं तब हमने क्या सोचा था यहां विराट वृक्ष कभी एक सरसों के दाने सेबी छोटे बीच के अंदर छिपा हुआ था ठीक उसी तरह 1863 मकर संक्रांति के दिन कोलकाता के सिमुलिया पल्ली मोहल्ले में भुनेश्वरी देवी और श्री विश्वनाथ की 6वी संतान के रूप में जन्मा शिशु (स्वामी विवेकानंद)उसे देखकर उस समय कौन सोच पाया होगा कि यहां से तू अपने 39 वर्षीय जीवनकाल में एसी आश्चर्यजनक प्रतिभा का विकास करेगा जिसका प्रभाव पूरे देश काल में फैल जाएगा
स्वामी विवेकानंद जी का संक्षिप्त जीवन परिचय- Swami vivekanand
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म 12 जनवरी सन 1863 मकर सक्रांति की पोस कृष्ण सप्तमी को कोलकाता शहर की सिमुलिया पल्ली मे हुआ इनके बचपन का नाम नरेंद्र नाथ दत्त था इनकी माता का नाम श्रीमती भुनेश्वरी देवी तथा पिता का नाम विश्वनाथ दत्त 1881 में इन्होंने ईश्वर चंद्र विद्यासागर की स्कूल में दाखिला लिया 1884 मैं इन्होंने बीए की परीक्षा दी और इसी वर्ष उनके पिताजी की मृत्यु हो गई इनके परम गुरु का नाम रामकृष्ण परमहंस था 1886 में इनके गुरु रामकृष्ण ने महासमाधि ले ली 1888 में उन्होंने 4 वर्ष तक भारत भ्रमण किया 31 मई को 1893 विश्व धर्म सभा अमेरिका के लिए प्रस्थान किया और 30 जुलाई 1893 को यहां शिकागो पहुंचे सन 1895 में वेदांत प्रचार के लिए इंग्लैंड गए और 1896 फरवरी में इन्होंने न्यूयॉर्क में वेदांत सोसाइटी की स्थापना की 16 जनवरी 1897 मैं इन्होंने पवित्र भूमि भारत विषय पर भाषण दिया 1 मई 1897 में इन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की 13 नवंबर 1898 में इन्होंने कोलकाता बाग बाजार में निवेदिता बालिका विद्यालय की स्थापना की उसी साल 9 दिसंबर को बेलूर मठ की स्थापना की 1902 जनवरी में बोधगया दर्शन करके काशी धाम यात्रा की 1902 , 4 जुलाई शुक्रवार रात्रि 9:10 को बेलूर मठ में इन्होंने महासमाधि ले ली| स्वामी विवेकानंद जी के जन्मदिन को युवा दिवस के रूप में भी मनाया जाता है
इनका कुल जीवन काल 39 वर्ष 5 महीने 24 दिन तक का रहा
विवेक वाणी vivekanand quates-
विवेक वाणी vivekanand quates-
- दूसरे देशों में धर्म की केवल चर्चा ही होती है पर ऐसे धार्मिक पुरुष जिन्होंने धर्म को अपने जीवन में परिणित किया जो स्वयं साधक हैं केवल भारत में ही है
- हमारे चरित्र का सर्वोच्च आदर्श ही त्याग है
- सफलता को प्राप्त करने के लिए हमें सतत प्रयत्न और जबरदस्त इच्छा रखनी चाहिए क्योंकि प्रयत्नशील व्यक्ति ही कहता है कि मैं समुद्र पी जाऊंगा मेरी इच्छा से पर्वत टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे इस प्रकार की शक्ति और इच्छा रखो कि कड़ा परिश्रम करो तभी तुम अपने जीवन उद्देश्य को निश्चित कर पाओगे
- भय दुर्बलता का प्रतीक है
- त्याग ही महाशक्ति है
- अंधविश्वास मनुष्य का महान शत्रु है
- जब तक स्वयं में विश्वास नहीं कर सकते तब तक परमात्मा में भी विश्वास नहीं कर सकते
भागो मत सामना करो– motivation story
एक बार स्वामी विवेकानंद जी दुर्गा जी के मंदिर से निकल रहे थे तभी उन्हें वहां मौजूद बंदरों ने घेर लिया वह स्वामी जी के निकट आकर उन्हें डराने लगे स्वामी जी खुद को बचाने के लिए वहां से दौड़कर और बंदर भी उनके पीछे पीछे आ गए और पास एक वृद्ध सन्यासी यह सब देख रहा था उन्होंने स्वामी जी को रोका और बोला "रूको" सामना करो स्वामी जी तुरंत पलटे और बंदरों की तरफ बढ़ने लगे ऐसा करते ही बंदर भाग गए इस घटना से स्वामी जी को सीख मिली की — यदि तुम किसी चीज से भयभीत हो तो उसे "भागो मत बल्कि उसका पलट कर सामना करो"
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