हेलो फ्रेंड्स News4Blog मैं आपका बहुत बहुत स्वागत है आज हम आपको उत्तराखंड राज्य में एक जिला टिहरी गढ़वाल का इतिहास (History of tehri garhwal)
के बारे में पूरी जानकारी हिंदी में देने वाले हैं टिहरी के इतिहास के बारे में जानने के लिए इस पोस्ट को पहले से लास्ट तक पढ़िए|
Tehri district उत्तराखंड राज्य का एक बहुत ही चर्चित जिला है जो गढ़वाल मंडल में स्थित है , टिहरी शब्द 'त्रिहरी' शब्द से बना है जिसका अर्थ है तीनों पापों (मनसा, वाचसा , कर्मणा) को मिटाना|
पर्वत और नदियों से घिरा यह जिला मन को मोहित करने का काम करता है जिसके आकर्षण से यहां प्रतिवर्ष कई सैलानी tourist पर्यटक यहां घूमने आते हैं क्योंकि यहां की प्राकृतिक सुंदरता हर किसी को यहां आने के लिए विवश कर देती है, चलिए अब जान लेते हैं टिहरी गढ़वाल के इतिहास के बारे में (tehri garhwal history)
टिहरी गढ़वाल का इतिहास - history of tehri garhwal
टिहरी के इतिहास के बारे में बात करें तो 1888 से पूर्व गढ़वाल क्षेत्र छोटे-छोटे गढ़ो में विभक्त था जिसमें प्रत्येक गढ़ में अलग अलग राजा राज्य करते थे जिन्हें ठाकुर, राणा, राय के नाम से जाना जाता था पुरातन तथ्यों के आधार पर यह भी कहा जाता है,
मालवा के राजकुमार कनकपाल जब बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए गए तो उनकी मुलाकात एक पराक्रमी राजा भानु प्रताप के साथ हुई और राजा कनक पाल ने भानु प्रताप को अपने पराक्रम से मोहित कर लिया जिससे राजा कनक पाल ने अपनी बेटी का विवाह मालवा के राजा कनकपाल के साथ करवा दिया, और अपना सारा राज्य कनक पाल को दान दे दिया धीरे-धीरे करके कनक पाल और उनकी आने वाली पीढ़ी ने सारे गढ़वाल क्षेत्र को अपने कब्जे में कर लिया 1803 में पूरा गढ़वाल क्षेत्र कनक पाल की पीढ़ी के कब्जे में आ गया|
यह देखकर गोरखाओ ने गढ़वाल पर आक्रमण करनेे की कोशिश की पर वह नाकाम रहे 1803 के अंतिम चरण में गोरखा ने देहरादून पर अपना कब्जा कर लिया जिस युद्ध में राजा प्रद्युमन शाह की मृत्यु हो गई| धीरे-धीरे गोरखाओं ने पूरेेेे गढ़वाल क्षेत्र मैं कब्जा कर लिया जो कि कांगड़ा तक फैला हुआ था गोरखाओं मैं लगभग 12 साल तक यहां राज्य किया और बाद में महाराजा रणजीतसिंह सिंह ने गोरखाओं को कांगड़ा से बाहर निकाल फेंका|
बाद में प्रदुमनशाह के बेटे सुदर्शनशाह(जो सैनिकों को द्वारा युद्ध में बचाए गए थे) ने ईस्ट इंडिया कंपनी की मदद से गोरखा से अपना राज्य पुनः वापस ले लिया|
इस तरह राजा सुदर्शनशाह ने अपनी राजधानी टिहरी(Tehri) को बनाया बाद में उनके उत्तराधिकारी प्रताप शाह, कीर्ति शाह, नरेंद्र शाह ने इस राज्य की राजधानी अपने अपने नाम प्रताप नगर, कीर्ति नगर, नरेंद्र नगर रखा |
इन तीनों राजाओं ने 1815 से लेकर 1949 तक राज्य किया आजादी के बाद लोगों ने राजशासन से मुक्त होना सही समझा महाराजाओं के लिए भी अब राज्य करना मुश्किल हो गया था तो यहां के अंतिम राजा 60वें मानवेंद्र शाह ने भारत के साथ एकजुट होकर राज्य से इस्तीफा दे दिया| जिससे राज शासन का अंत हो गया|
इसी तरह टिहरी राज्य को उत्तर प्रदेश के साथ मिलाकर इसे उसी के नाम से एक जिला बना दिया गया और इसी तरह 24 फरवरी 1949 को उत्तर प्रदेश सरकार ने tehri की एक तहसील को अलग कर उत्तरकाशी जिला बनवा लिया|
आशा करता हूं कि आपको टिहरी गढ़वाल का इतिहास (history of tehri garhwal) पढ़ कर मजा आया होगा और आपको इससे कुछ सीखने को भी मिला होगा अगर आपको यह पोस्ट tehri garhwal का इतिहास पसंद आई हो तो आप इसे social media or अपने friends के साथ शेयर करना ना भूले Thanks You :)
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